Wednesday, 28th Nov 2012;10:30pm
Electronic City, Bangalore
There are few days when I feel completely hollow, less motivated and there are days when I feel at the top of the world brimming with energy, highly motivated, supremely Confident and so on. I do not know Why? Does it happen with everyone?
Today was one such day, when I was not in my best. I took rest from workouts after a completely exhausting day yesterday.
Sharing my thoughts through this beautiful poem:
हिंमत हारा बैठा था में !
हिंमत हारा बैठा था में,
पीठ फिराये भविष्य से।
हार चुका था अपनी शक्ति,
अपनी ही कमजोरी से ।
देखा मैंने एक मकड़ी को,
बार बार यूँ गिरते हुए।
अपने बुने हुए जाल पे फिर भी,
कंई बार जो सँभलते हुए।
गिरती रही, सँभलती रही पर..
बुनती रही वो अपना जाल।
पुरा बन चुकने पर मकडी,
जैसे हो गई हो निहाल।
एक छोटी मक़्डी ने मुझ में,
भर दी हिंमत कंई अपार।
कुछ करने की ठान ली मैंने,
अब ना रहा मैं यूँ लाचार।
मक़डी ने सिखलाया मुज़को,
हरदम कोशिश करते रहना।
”राज़” कितनी बाधाएं आयें,
हरदम कदम बढाये रहना।
Good Night to Everyone!
Narendra Gupta
10:30pm
Electronic City, Bangalore
There are few days when I feel completely hollow, less motivated and there are days when I feel at the top of the world brimming with energy, highly motivated, supremely Confident and so on. I do not know Why? Does it happen with everyone?
Today was one such day, when I was not in my best. I took rest from workouts after a completely exhausting day yesterday.
Sharing my thoughts through this beautiful poem:
हिंमत हारा बैठा था में !
हिंमत हारा बैठा था में,
पीठ फिराये भविष्य से।
हार चुका था अपनी शक्ति,
अपनी ही कमजोरी से ।
देखा मैंने एक मकड़ी को,
बार बार यूँ गिरते हुए।
अपने बुने हुए जाल पे फिर भी,
कंई बार जो सँभलते हुए।
गिरती रही, सँभलती रही पर..
बुनती रही वो अपना जाल।
पुरा बन चुकने पर मकडी,
जैसे हो गई हो निहाल।
एक छोटी मक़्डी ने मुझ में,
भर दी हिंमत कंई अपार।
कुछ करने की ठान ली मैंने,
अब ना रहा मैं यूँ लाचार।
मक़डी ने सिखलाया मुज़को,
हरदम कोशिश करते रहना।
”राज़” कितनी बाधाएं आयें,
हरदम कदम बढाये रहना।
(-Unknown)
Narendra Gupta
10:30pm
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